एक अवैज्ञानिक सोच रखने वाले नामी डॉक्टर की दास्ताँ
डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने कुछ मनगढंत वैज्ञानिक कारण बताते हुए कहा था कि ताली थाली और दीपक से कोरोना वायरस मर जायेगा और ये मोदी जी का मास्टर स्ट्रोक है। …35 रुपए से कोरोना के इलाज का दावा करने वाले, वैक्सीन के दोनों डोज लगा चुके डॉक्टर अग्रवाल के कोरोना से निधन और अवैज्ञानिक सोच पर धर्मेन्द्र आज़ाद का लेख…
मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट पद्म श्री डॉ. के.के अग्रवाल का 17 मई को कोरोना से निधन हो गया, वे 62 वर्ष के थे। हैरानी की बात यह है कि वे वैक्सीन के दोनों डोज़ ले चुके थे। डॉक्टर साहब चर्चित हृदय रोग विशेषज्ञ थे और पूर्व में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। वर्तमान केंद्र सरकार के साथ उनकी काफ़ी वैचारिक निकटता रही है।
डॉ. के.के अग्रवाल का यूँ जाना वैक्सीन की विश्वसनियता पर तो सवाल खड़े करता ही है, साथ ही उनके द्वारा दिये जाने वाले नुस्ख़ों की वजह से उनकी अधकचरी सोच को भी कठघरे में खड़ा करता है।
देश में पाखण्डों व कथित वैदिक ज्ञान व संस्कृति के बढ़ते प्रभाव को भाँपते हुए डॉक्टर के.के. अग्रवाल भी दक्षिणपंथी मूर्खता की लहर को दिशा देने के लिये अपनी भूमिका बनाने लगे।
हम भारतीयों ने भले ही आधुनिक विज्ञान में कोई उल्लेखनीय खोजें नही की हैं पर विदेशी खोजों पर दावा ठोकना दक्षिणपंथियों का प्रिय शगल है। उनकी मानें तो सारा आधुनिक विज्ञान वेदों से ही टपका है, हालाँकि उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं होता है कि अगर वेदों में विज्ञान भरा हुआ है तो कोई पंडित-आचार्य आज तक विज्ञान में कोई योगदान क्यों नहीं दे पाया।
वेदों से विज्ञान झाड़ने के क्रम में डॉ.साहब ने वैदिक ज्ञान और एलोपैथी विज्ञान का घालमेल प्रस्तुत करते हुए कुछ किताबें लिखीं। इसी विषय पर लिखी उनकी किताब ‘एलोवेदा’ काफ़ी सुर्ख़ियों में रही है, इसमें उन्होंने भारत की प्राचीनतम चिकिस्तीय पद्धति आयुर्वेद और मॉर्डन मेडिकल पद्धित का समावेश या कहें खिचड़ी पकाने की कोशिश की है।
यहाँ तक भी ठीक था पर डॉक्टर साहब की विश्वसनीयता काफ़ी हद तक तब खत्म हुई जब उन्होंने मोदी के ताली थाली और दीपक को जस्टिफाई किया। डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने कुछ मनगढंत वैज्ञानिक कारण बताते हुए कहा था कि ताली थाली और दीपक से कोरोना वायरस मर जायेगा और ये मोदी जी का मास्टर स्ट्रोक है। इस तरह का डॉक्टर किसी नीम-हकीम-ओझा से अलग कैसे हो सकता है।
दरअसल ऐसे कथित पढ़े लिखे लोग ही तानाशाहों के हथियार होते हैं। आम आदमी को लगता है जब यह इतना बुद्धिमान व्यक्ति इन कदमों का समर्थन कर रहा है तो फिर मोदी जी ने कुछ सोच समझकर ही निर्णय लिया होगा। फिर आम आदमी भी दवाई और ऑक्सीजन नही मांगता, बल्कि ताली और थाली बजाकर खुश रहता है।
कोरोनाकाल में भी डॉ. अग्रवाल ने कई सारे वीडियो बनाये। इन वीडियोस का उद्देश्य आत्मप्रचार के साथ साथ जनता को जागरूक करना था। पर जनता को जागरूक करते करते प्रकारांतर से उन्हें बेवक़ूफ़ बनाना था, भारतीय झोलाछाप डॉक्टरों की चिकित्सा पद्धति पर भरोसा दिलाना था, उन्नत चिकित्सा की ज़रूरत को गौण बनाना था।
अभी मई के दूसरे हफ़्ते में ही उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वो कहते हैं कि कोरोना का इलाज 35 रुपये में हो जाता है।
उनका कहना था कि जैसे ही कोरोना इन्सान के सिम्टम्स आएं कोई जाँच या परीक्षण करवाने की जरूरत नही स्टेरॉयड खाओ,ब्लड थिनर खाओ और ठीक हो जाओ। इस संदर्भ में हरियाणा के वरिष्ठ डॉक्टर सी डी शर्मा जी का कहना है कि ऐसी सलाह देना बहुत घातक है, बिना कोरोना की पुष्टि किये, व छटे दिन से पहले स्टेरॉयड देना शरीर की इम्यूनिटी को बहुत कमज़ोर कर सकता है।