अनानास के बाद अब शरीफे को लेकर भिड़े चीन और ताइवान, मामला क्या है?

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चीन के साथ ताइवान का व्यापारिक संबंध दशकों के अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है. कुछ दिनों पहले चीन ने ताइवान से उसके दो किस्मों की सेबों (शरीफा) को आयात नहीं करने की धमकी दी. अब ताइवान ने इस मामले को विश्व व्यापार संगठन में ले जाने की धमकी दी है.

दोनों देशों के बीच फलों के व्यापार को लेकर इस ताज़ा छिड़े विवाद में चीन ने ख़तरनाक कीटाणुओं का हवाला देते हुए सेब की इन (शुगर एप्पल और वैक्स एप्पल) दो किस्मों के आयात को रोकने की धमकी दी है. चीन का कहना है कि उसके यहां की फसलों को इन कीटाणुओं से नुकसान पहुंचने की आशंका है.

चीन के कस्टम विभाग का कहना है कि उसे ताइवान के शुगर एप्पल में प्लानोकोकस माइनर नाम के कीट बार-बार मिले हैं. इसने अपनी ग्वांगडोंग शाखा और जुड़े हुईं सभी शाखाओं को कस्टम पर इन फलों को रोकने के लिए कहा है.

ताइवान के कृषि मंत्री चेन ची चुंग ने कहा कि यह चीन का बग़ैर किसी वैज्ञानिक कारण बताए एकतरफ़ा व्यवहार है. साथ ही उन्होंने चीन के इस फ़ैसले की आलोचना की. चेन ने कहा, हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि, “ताइवान ने चीन से कहा है कि अगर वो 30 सितंबर से पहले मौजूदा समस्या का हल ढूंढने की ताइवान के अनुरोध का जवाब नहीं देता तो वह इस मसले को विश्व व्यापार संगठन के समक्ष ले जाएगा.” चेन ने यह भी कहा कि सरकार इससे प्रभावित किसानों की मदद के लिए 100 मिलियन ताइपे डॉलर (3.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर) खर्च करेगी.

इसी साल फ़रवरी के महीने में भी चीन ने ताइवान से अनानास ख़रीदने पर ‘हानिकारक जीवों’ का हवाला देते हुए प्रतिबंध लगाया था. ताइवान ने तब कहा था कि यह उनके देश पर चीन के दबाव बनाने की एक चाल है. दशकों से चीन की कम्युनिस्ट सरकार का दावा है कि ताइवान एक देश नहीं बल्कि चीन का ही एक प्रांत है. वहीं ताइवान हमेशा इस दावे को ख़ारिज करता रहा है.

चीन में हुए गृहयुद्ध में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को 1949 में हराया था. इसके बाद कॉमिंगतांग ने ताइवान में जाकर अपनी सरकार बनाई. दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने हार के बाद कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंपा था. लेकिन जब कॉमिंगतांग ने वहां अपनी सरकार बनाई तो विवाद यह उठा कि जापान ने ताइवान किसको दिया था.

तब चीन में कम्युनिस्ट सत्ता में थे और ताइवान में कॉमिंगतांग का शासन था. माओत्से तुंग का मानना था कि चीन में जब जीत उनकी हुई है तो ताइवान पर अधिकार भी उनका ही है जबकि कॉमिंगतांग का कहना था कि बेशक चीन के कुछ हिस्सों में उनकी हार हुई है मगर आधिकारिक रूप से वे ही चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं.

इसके बाद से ही दोनों आधिकारिक चीन होने का दावा करने लगे. लेकिन जब 1971 से चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य हो गया तो 1979 में ताइवान की यूएन में आधिकारिक मान्यता ख़त्म कर दी. इसके बाद ही, चीन के मुक़ाबले ताइवान कमज़ोर पड़ने लग गया.

व्यावहारिक तौर पर ताइवान ऐसा द्वीप है जो 1950 से ही स्वतंत्र रहा है. मगर चीन इसे अपना विद्रोही राज्य मानता है. जहां ताइवान ख़ुद को स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र मानता है, वहीं चीन का मानना है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए.

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