क्यों? औरतों की आर्थिक मज़बूती के लिए भारत सरकार ने ‘भारतीय महिला बैंक’ का गठन किया

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घर के हर छोटे-बड़े काम से लेकर घर का बजट बखूबी संभालने वाली महिलाओं को पैसों की ज़िम्मेदारी से हमेशा दूर ही रखा जाता है। चूंकि पुरुषों को ही हमेशा से परिवार के लिए कमाने-खाने वाला माना जाता है इसलिए यह समाज महिलाओं को एक ऐसे रूप में नहीं देख सकता जो पैसे का लेन-देन करने या उसे संभालने में सक्षम हो। यही कारण है कि महिलाओं की आर्थिक क्षेत्र में हिस्सेदारी कम है और वे आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हैं। आंकडें बताते हैं कि साल 2011 से 2017 के बीच भारत में बैंक खातों की संख्या में लगभग 45 फीसदी इजाफा हुआ था। हालांकि कई सरकारी योजनाओं के कारण महिला खाताधारकों की संख्या में इज़ाफा तो हुआ है लेकिन इनमें से आधी से ज्यादा महिलाएं या तो बैंक में कभी गई नहीं हैं या फिर जब गई हैं तो घर के किसी पुरुष को पैसों की जरूरत होने पर उसे निकालने के लिए महिला के हस्ताक्षर की आवश्यकता के लिए गई है। महिलाओं के खातों में कब, कहां, कितना लेन-देन होना है यह सब पुरुष ही तय करते हैं।

विश्व बैंक द्वारा जारी ग्लोबल फाइंडक्स डेटाबेस के अनुसार भारत में लगभग हर दो बैंक खातों में से एक निष्क्रिय रहता है। इसमें भी इन निष्क्रिय खातों में जेंडर गैप ध्यान देने योग्य है। डेटा के मुताबिक 43 फीसद पुरुष खाताधारक और 54 फीसदी महिला खाताधारक अपने खाते का उपयोग नहीं करते हैं। यह जेंडर गैप महिलाओं की आर्थिक स्थिति पर अधिक विचार करने पर जोर देता है। महिला स सशक्तिकरण तब तक अधूरा है जब तक महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो जाती। महिलाओं का आर्थिक रूप से निर्भर होना एक परिवार, समाज और अंत में देश को मज़बूत करता है। भारतीय अर्थव्यवस्था के प्राथमिक स्तंभ होने के नाते बैंक महिलाओं के वित्तीय समावेशन को बढ़ाने और महिला सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस बात को समझते हुए और औरतों की आर्थिक मज़बूती के लिए भारत सरकार ने साल 2013 में ‘भारतीय महिला बैंक’ का गठन किया। आईए जानते हैं यह बैंक अपने उद्देश्य में कितना सफल रहा।

यूपीए सरकार ने साल 2013 में ‘भारतीय महिला बैंक’ की शुरुआत की। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 19 नवंबर 2013 को 1,000 करोड़ रुपए पूंजी आवंटित कर बैंक का उद्घाटन किया था। उषा अनंत सुब्रमण्यम भारतीय महिला बैंक की पहली और आखिरी प्रबंध निदेशक बनीं। बैंक का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की बैंकिंग आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करना और उनके विकास के माध्यम से आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देना था। मुख्य रूप से महिलाओं के लिए बनाया गया और उनके द्वारा ही संचालित इस बैंक में पुरुषों द्वारा राशि जमा करने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। बैंक का उद्देश्य उद्यमशीलता कौशल वाले लोगों को प्रेरित करना, गैर-सरकारी संगठनो के साथ मिलकर महिलाओं को छोटे-मोटे व्यवसायों में प्रशिक्षित करना और महिलाओं के बीच संपत्ति के स्वामित्व को बढ़ावा देना था।

बैंक की शुरुआत काफी धूमधाम से हुई थी। शुरूआती दौर में अनुमान लगाया गया कि 2020 तक यह बैंक 60,000 करोड़ रुपये तक का कारोबार करेगा। कारोबार तो हुआ नहीं परंतु बैंक के कर्ता-धर्ता अवश्य बदल गए। इसके फ्लाॅप होने के कई कारण रहे। बैंक की शुरुआत 7 शाखाओं से हुई थी, जो मुख्यतः बड़े शहरों में थीं। द क्विंट में छपे एक लेख के मुताबिक इसकी 103 शाखाएं मौजूद हैं लेकिन अधिकतर वे भी बड़े शहरों में हैं जहां पहले से ही बड़े बैंको का नाम है। शुरूआत में बैंक का इरादा करीबन 25 फीसदी शाखाएं ग्रामीण इलाकों में शुरू करने का था। लेकिन ग्रामीण इलाकों में जहां इसकी आवश्यकता की सबसे ज्यादा दरकार थी यह अपनी पकड़ बनाने में विफल रहा।

महिलाओं के लिए बनाया गया यह बैंक तीन साल में ही डगमगा गया था। कम ब्याज दरें और विभिन्न प्रकार के लोन से महिलाओं को आकर्षित करने वाली स्कीम भी ज्यादा नहीं टिक सकी। इसका एक मुख्य कारण बैंक का प्रचार ना करना भी रहा। एक बड़ी आबादी को आज भी मालूम नहीं है कि भारतीय महिला बैंक नाम से कोई बैंक भी है। महिलाओं को आकर्षित करने के लिए लाई गई सभी नई स्कीम और लोन चौपट रहे। तीन साल में भारतीय महिला बैंक सिर्फ 192 करोड़ रुपये का लोन ही महिलाओं को देने में सक्षम रहा। साल 2015 में ही इसके बंद होने के कयास लगाए जाने लगे थे। आखिरकार, 1 अप्रैल 2017 को भारतीय महिला बैंक का विलय भारतीय स्टेट बैंक में कर दिया गया। भारतीय महिला बैंक का यह आइडिया असफल रहा। हालांकि, यह अभी भी पूरे भारत में महिला उद्यमियों की मदद करने के लिए अनूठी विशेषताओं को बरकरार रखता है। बीएमबी श्रृंगार, बीएमबी अन्नपूर्णा लोन, बीएमबी एसएमई ईज़ी व बीएमबी परवरिश लोन यह कम दरों पर उपलब्ध करता है। लेकिन जिस बड़े उद्देश्य को ध्यान में रखकर इसकी स्थापना हुई थी वह निराशापूर्ण रही।

बैंकिंग क्षेत्र भारत में तेज गति से बढ़ रहा है। पिछले कुछ सालों में बैंकिंग क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ी है। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीबन 29 फीसद महिलाएं अब डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल करती हैं। इसके बावजूद भी वित्तीय उद्योग में महिलाओं का बहुत छोटा अनुपात है। कोरोना काल में यह बहुत अधिक प्रभावित भी हुआ। कई रिपोर्ट्स यह तस्दीक करती हैं कि कोरोना के कारण पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने संगठित और असगंठित दोंनो ही क्षेत्रों में अधिक नौकरियां खोई। यहां तक की उच्च शिक्षित महिला श्रमिकों को भी अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। हमारे समाज में कार्यस्थलों में पहले ही महिलाओं की संख्या बहुत कम है और जो मौजूद हैं उन्हें दिन-प्रतिदिन अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

अनेक शोध के अनुसार औरतों की भागीदारी के बिना एक देश की आर्थिक व्यवस्था मजबूत नहीं हो सकती। शोध के अनुसार महिला उद्यमिता संभावित रूप से भारत में रोजगार की स्थिति को बदल सकती है। यह 2030 तक 150-170 मिलियन नौकरियां पैदा करने की गुंजाइश रखती है, जो कि पूरी काम करने वाली आबादी के लिए 25 प्रतिशत तक नौकरी पैदा कर सकती है। एक बार जब महिलाओं की बैंक खाते तक पहुंच हो जाती है, तो उनकी बचत करने की प्रवृत्ति बढ़ती है और उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिलती है। साथ ही उनकी निर्णय लेने की शक्ति मजबूत होती है। इसलिए औरतों का आर्थिक क्षेत्र में होना अति आवश्यक है। खासकर ग्रामीण भारत की महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और उनके लिए आय का एक स्रोत उनकी मुक्ति और आत्मनिर्भरता की ओर पहला कदम है।

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