बनारस की ग्रामीण औरतें और किशोरियां इस चुनाव से क्या चाहती हैं

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है। शहर, गांव, बस्ती, ज़िला हर जगह चुनाव की चर्चा और घोषणापत्र के ज़रिए राजनीतिक पार्टियों के किए गए वादों पर चर्चा ज़ोर-शोर पर है। विधानसभा चुनाव का ऐलान होते ही सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपना मंथन करना शुरू कर दिया। सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने घोषणा पत्र में बड़ी-बड़ी योजनाओं का एलान भी कर दिया, पेंशन, रोज़गार और विकास के नाम पर सभी पार्टियों ने कई वादे भी किए, जिन्हें वह सत्ता में आने के बाद पूरा करने का आश्वासन दे रही हैं।

हर बार की तरह इस बार भी विधानसभा चुनाव का ऐलान होते ही हमारे गांव में लोग इस चर्चा में जुट गए कि इस बार का वोट किसे जाएगा। बस्ती के सभी वरिष्ठ पुरुषों ने गांव की महिलाओं और युवाओं के साथ बैठक करके इस पर मंथन करने को कहा कि आप सभी मन में तैयार कर लीजिए कि किसे वोट देना है। विधानसभा चुनाव में मतदान को लेकर जब मैंने महिला बैठक में अपने गांव की महिलाओं और युवा लड़कियों के बात की तो उन्होंने कहा उन लोगों को नहीं मालूम कि उनके इलाके से कौन सा उम्मीदवार चुनाव में खड़ा हो रहा है। ग्रामीण स्तर पर हमारी दलित बस्ती की महिलाएं और किशोरियां उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से क्या चाहती हैं या उनकी उम्मीदें क्या है, इस पर जब मैंने अपनी और आसपास की बस्ती में बात की उनकी ये बातें सामने आई।

अमिनी गाँव की आरती (बदला हुआ नाम) पहली बार वोट देने वाली है। उससे जब मैंने सरकार से उसकी उम्मीदों पर बात की तो उसने बताया कि वह चाहती है कि अपनी शिक्षा को जारी रखने में सरकार से उसे मदद मिले। कोरोना के दौरान उसकी बड़ी बहन की पढ़ाई छूट गई है तो सरकार उन सभी लड़कियों को दोबारा शिक्षा से जोड़ने के लिए कोई योजना लाए जिन्हें कोरोना के दौरान अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। यहां पहली बार वोट देने वाली लड़कियां कोरोना से प्रभावित हुई अपनी शिक्षा को दोबारा ट्रैक पर लाने में सरकार से मदद की उम्मीद कर रही हैं।

अमिनी गाँव की ही दीपा (बदला हुआ नाम) कहती हैं उन्होंने बीएड की पढ़ाई की है, लेकिन अभी तक उन्हें कोई रोज़गार नहीं मिल पाया है, इसलिए वह चाहती हैं कि आनेवाली सरकार युवा महिलाओं के रोज़गार के अवसर लाए। दीपा अपने बस्ती की एकमात्र लड़की है जिन्होंने बीएड किया, इसके लिए उनके परिवार ने काफ़ी मेहनत और सहयोग किया। लेकिन नौकरी न मिलने की वजह से वह काफ़ी हतोत्साहित है। गांव में और भी युवा महिलाएं हैं जो शिक्षित है और रोज़गार से जुड़कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, पर उनके लिए कोई भी रोज़गार का अवसर सुनिश्चित नहीं हो पाता है।

बसुहन की पैंतीस वर्षीय रानी (बदला हुआ नाम) के परिवार में किसी का भी वोटिंग और आधार कार्ड नहीं बन पाया है, जिसकी वजह से उसका परिवार किसी भी चुनाव में वोट नहीं दे पाता है। गांव की इस मुसहर बस्ती में ऐसे कई परिवार हैं, जिनके पास न तो वोटिंग कार्ड है और न ही आधार कार्ड। पूछने पर रानी ने बताया कि कई बार उन लोगों ने आधार कार्ड बनवाने की कोशिश की। पहले तो आधार कार्ड का फार्म इंग्लिश में था जिसे भरवाने के लिए उन लोगों को पैसे देने पड़े। इसके बाद कई बार निवास प्रमाण पत्र के लिए प्रधान के घर का चक्कर लगाना पड़ा पर आज तक उन लोगों का आधार कार्ड नहीं बन पाया। बस्ती के इन परिवारों को सरकार से कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनके पास वोट देने का अधिकार तो है पर ज़रिया नहीं। इसलिए आजतक किसी भी चुनाव का कोई प्रत्याशी उनके पास वोट के लिए नहीं आया। इन महिलाओं की मांग है कि उनके वोटिंग के अधिकार को सुनिश्चित किया जाए, क्योंकि कहीं न कहीं यही वे अधिकार हैं जो समाज में उनकी भूमिका को बेहतर करने में मदद करेगा।

तेंदुई गांव में जब हम लोगों ने महिलाओं और किशोरियों से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि हर बार सरकार बड़ी-बड़ी बजट वाली योजनाएं लाती है, लेकिन समाज के हर तबके तक उस योजना का लाभ नहीं पहुंच पाता है। इन परिवारों को सरकार से कोई ख़ास उम्मीद नहीं है। बीस साल की मीना (बदला हुआ नाम) बताती है कि उसकी भाभी को गर्भावस्था के दौरान किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पाया। टीकाकरण और पौष्टिक आहार जैसी बुनियादी सुविधाओं का लाभ वो नहीं ले पा, लगातार आंगनवाड़ी केंद्र में चक्कर काटने पर हर बार ये कह दिया जाता है कि योजना समाप्त हो गई या राशन ख़त्म हो गया। इसकी वजह से उनका बच्चा कुपोषित पैदा हुआ। अब क़र्ज़ पर बच्चे का इलाज करवाने को परिवार मजबूर है। मीना यही चाहती है कि भले ही सरकार कम योजनाएं लाए लेकिन जो भी योजनाओं की वह घोषणा करे, उसे ज़मीन पर लागू करने के लिए काम करे।

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