कर्नाटक हाईकोर्ट ने हुबली शहर की ईदगाह में गणेश पूजा की इजाज़त दी. इसे लेकर विवाद भी हुआ. कर्नाकट वक़्फ़ बोर्ड का दावा था कि ये ईदगाह मुसलमानों की संपत्ति है और इस पर किसी और धर्म के कार्य की इजाज़त नहीं दी जा सकती. लेकिन अपने आदेश में कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि ये संपत्ति वक़्फ के रूप में दर्ज नहीं है.
कोर्ट ने हुबली-धारवाड़ नगर निगम (एचडीएमसी) की ओर से हिंदू संगठनों को ईदगाह मैदान में गणेश उत्सव मनाने की इजाज़त देने वाले आदेश को बरकरार रखा. कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस अशोक एस किनागी ने अपने आदेश में कहा, “इस तथ्य को लेकर कोई विवाद नहीं है कि ये संपत्ति नगर निगम की है.”
साल 2010 में, सप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में हुबली ईदगाह को एचडीएमसी की संपत्ति माना था. इसी तरह के एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बैंगलुरू की चामराजपेट ईदगाह में गणेश उत्सव मनाने पर रोक लगा दी थी. चामराजपेट ईदगाह के मालिकाना हक़ को लेकर विवाद है और अब इस पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है.
वक़्फ़ कोई भी चल या अचल संपत्ति होती है जिसे कोई भी व्यक्ति जो इस्लाम को मानता हैं अल्लाह के नाम पर या धार्मिक मक़सद या परोपकार के मक़सद से दान करता है. ये संपत्ति भलाई के मक़सद से समाज के लिए हो जाती है और अल्लाह के सिवा कोई उसका मालिक नहीं होता और ना हो सकता है. वक़्फ़ वेलफ़ेयर फ़ोरम के चेयरमैन जावेद अहमद कहते हैं, “वक़्फ़ एक अरबी शब्द है जिसके मायने होते हैं ठहरना. जब कोई संपत्ति अल्लाह के नाम से वक़्फ़ कर दी जाती है तो वो हमेशा-हमेशा के लिए अल्लाह के नाम पर हो जाती है. फिर उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है.”
भारत के सप्रीम कोर्ट ने भी जनवरी 1998 में दिए अपने एक फ़ैसले में कहा था कि ‘एक बार जो संपत्ति वक़्फ़ हो जाती है वो हमेशा वक़्फ़ ही रहती है.’ वक़्फ़ संपत्ति की ख़रीद फ़रोख़्त नहीं की जा सकती है और ना ही इन्हें किसी को हस्तांतरित किया जा सकता है. वक़्फ़ का इस्लामी इतिहास बताते हुए इंस्टीट्यूट ऑफ़ ऑब्जेक्टिव स्टडीज़ के वाइस चेयरमैन अफ़ज़ल वानी कहते हैं, “जब कोई मुसलमान किसी संपत्ति का दीन के लिए अच्छा इस्तेमाल करना चाहता है तो पैगंबर हज़रत मोहम्मद ने एक तरीक़ा बताया है जिसके तहत ये संपत्ति दान की जा सकती है.”
अफ़ज़ल वानी कहते हैं, “हज़रत उमर के पास एक संपत्ति आई थी और उन्होंने पैग़ंबर मोहम्मद से पूछा था कि मैं इसका बेहतरीन इस्तेमाल करना चाहता हूं तो उन्होंने बताया था कि आप इस संपत्ति को ठहरा दो (वक़्फ़ कर दो) यानी फिक्स कर दो और इसका जो फ़ायदा होगा वो ज़रूरतमंदों के इस्तेमाल में ले आए.”
“किसी संपत्ति को वक़्फ़ करने का मतलब है उसे अल्लाह के नाम पर कर देना और उससे जो फ़ायदा आए जैसे खेत से फ़सल या दुकान से किराया उसका इस्तेमाल सबसे ज़रूरतमंद लोगों के लिए किया जाए.”
अफ़ज़ल वानी कहते हैं, “संपत्ति को वक़्फ़ करने वाला व्यक्ति ये भी तय कर सकता है कि उससे होने वाले फ़ायदा का इस्तेमाल किस मक़सद के लिए किया जाए. डीड या वसीयत के जरिए संपत्ति वक़्फ़ की जा सकती है और उसके मक़सद तय किए जा सकते हैं.” अफ़ज़ल वानी के मुताबिक, “वक़्फ़ बोर्ड एक्ट 1995 के तहत वक़्फ़ डीड के ज़रिए, सर्वे के ज़रिए या लगातार हो रहे इस्तेमाल की तस्दीक के ज़रिए संपत्ति को वक़्फ़ दर्ज कर सकता है”.
ईदगाह, क़ब्रिस्तान, मस्जिद, खेत, इमारत, बाग़ या किसी भी तरह की संपत्ति को वक़्फ़ किया जा सकता है. अधिकतर वक़्फ़ संपत्तियां मस्जिदें, ईदगाहें और खेत ही होते हैं. क़ानून के मुताबिक अगर किसी को संपत्ति के वक़्फ़ के रूप में दर्ज करने से कोई आपत्ति है तो वो उसे वक़्फ़ दर्ज किए जाने के एक साल के भीतर वक़्फ़ ट्राइब्यूनल में दर्ज कराए और फिर ट्राइब्यूनल ही तय करेगा कि संपत्ति वक़्फ़ है या नहीं.
सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल के पूर्व सचिव क़ैसर शमीम कहते हैं, “किसी संपत्ति को वक़्फ़ करने के लिए सबसे पहले वक़्फ़नामा तैयार होता है जिसमें संपत्ति को वक़्फ़ किए जाने का मक़सद भी निर्धारित होता है. वक़्फ़ बोर्ड सर्वे के ज़रिए ऐसी संपत्ति को अपने रिकॉर्ड में दर्ज कर लेता है और फिर इसका गजट नोटिफिकेशन कराता है. जब तक संपत्ति सरकार के रिवेन्यू रिकॉर्ड में भी वक़्फ़ दर्ज नहीं होती तब तक ये अमल पूरा नहीं होता.”
एडवोकेट जावेद अहमद कहते हैं, “वक़्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए सबसे ज़रूरी है कि सबसे पहले वक़्फ़ बोर्ड में संपत्ति वक़्फ़ दर्ज हो और फिर राज्य के रेवेन्यू रिकॉर्ड में भी इसे वक़्फ़ के तौर पर दाख़िल-ख़ारिज कराया जाए.” क़ानून में व्यवस्था होने के बावजूद भी किसी संपत्ति का वक़्फ़ में दर्ज होना इस बात पर निर्भर करता है कि वक़्फ़ बोर्ड किस नज़रिए से काम करता हैं.
क़ैसर शमीम कहते हैं, “किसी संपत्ति का वक़्फ़ दर्ज होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसी राज्य सरकार की नीति क्या है. सरकार की जो नीतियां होती हैं वहीं उसके संस्थानों में झलकती हैं.” अफ़ज़ल वानी कहते हैं, “पहले चलन अचल संपत्तियों को वक़्फ़ करने का चलन था लेकिन अब चल संपत्तियां भी वक़्फ़ की जा सकती हैं क्योंकि अब संपत्ति की संकल्पना ही बदल गई है. अब किसी फ़र्म या कॉर्पोरशन या किसी और एसेट को भी वक़्फ़ किया जा सकता है.”
भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने भारत की सभी वक़्फ़ संपत्तियों के रिकॉर्ड को डिजीटल करने के लिए वक़्फ़ एसेट मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ़ इंडिया (WAMSI) प्रोजेक्ट शुरू किया है. इस प्रोजेक्ट की अगस्त 2022 की रिपोर्ट के मुतबिक देशभर में कुल 851535 वक़्फ़ संपत्तियां हैं.
सर्वाधिक वक़्फ़ संपत्तियां उत्तर प्रदेश में हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार में शिया और सुन्नी संपत्तियों के प्रबंधन के लिए अलग-अलग वक़्फ़ बोर्ड हैं. उत्तर प्रदेश सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के पास 210239 संपत्तियां हैं जबकि उत्तर प्रदेश शिया वक़्फ़ बोर्ड के पास 15386 संपत्तियां हैं.
यूपी के बाद सर्वाधिक वक़्फ संपत्तियां देश में पश्चिम बंगाल में हैं जहां 80480 संपत्तियां वक़्फ़ दर्ज हैं. इसके बाद पंजाब में 70994 संपत्तियां हैं. तमिलनाडु में 65945 वक़्फ संपत्तियां हैं जबकि कर्नाटक में 61195 वक़्फ़ संपत्तियां हैं.
हालांकि भारत में वक़्फ़ संपत्तियों की वास्तविक संख्या इससे अधिक हो सकती है क्योंकि देश में बहुत वक़्फ़ संपत्तियां ऐसी हैं जो वक़्फ़ बोर्ड के पास दर्ज नहीं है. सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल के पूर्व सचिव क़ैसर शमीम कहते हैं, “वक़्फ़ क़ानून के तहत हर दस साल के भीतर वक़्फ़ संपत्तियों का सर्वे होना चाहिए लेकिन ये काम लंबे अर्से से नहीं हुआ है. जब तक वक़्फ़ संपत्तियों का सर्वे ही पूरा नहीं होगा तब तक वास्तविक संख्या तय नहीं होगी.”
क़ैसर शमीम कहते हैं, “अभी वक़्फ़ संपत्तियों की संख्या वक्फ़ बोर्ड के डाटा के आधार पर तय की जाती है. हालांकि बहुत सी संपत्तियां ऐसी हैं जिनका इस्तेमाल तो वक़्फ़ की तरह होता है लेकिन वो वक़्फ़ बोर्ड के पास दर्ज नहीं है.जब तक सर्वे का काम पूरा नहीं होगा तब तक यक़ीन के साथ ये नहीं कहा जा सकता कि कुल कितनी संपत्तियां हैं.”
वक़्फ़ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए 1995 का वक़्फ़ एक्ट और 2013 का वक़्फ़ संशोधन क़ानून भी है. हिंदुस्तान में वक़्फ़ की संपत्तियों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय स्तर पर एक स्वायत्त निकाय है जिसे सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल कहते हैं. इसके अलावा राज्य स्तर पर वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए वक़्फ़ बोर्ड हैं. भारत में कुल 32 वक़्फ़ बोर्ड हैं.
सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल के सचिव रह चुके क़ैसर शमीम कहते हैं, “सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल का काम केंद्रीय सरकार को वक़्फ़ संपत्तियों से जुड़ी सलाह देना है. 2013 के संसोधन क़ानून के बाद ये भी जोड़ दिया गया कि वक़्फ़ काउंसिल राज्य के वक़्फ़ बोर्डों की निगरानी करेगी और उन्हें सलाह मशवरा भी देगी.”
वक़्फ़ बोर्ड में चयनित सदस्य होते हैं. सदस्य एक चेयरमैन का चुनाव करते हैं. जबकि सरकार एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करती है. वक़्फ़ संपत्ति के प्रबंधन के लिए मुतवल्ली नियुक्त होते हैं. संपत्ति का सीधा नियंत्रण मुतवल्ली के हाथ में होता है और ये संपत्ति से होने वाली कुल आय का एक तय प्रतिशत वक़्फ़ बोर्ड को देते हैं.
विश्लेषक मानते हैं कि चूंकि वक़्फ़ संपत्तियां अल्लाह के नाम पर होती हैं और इनका कोई वारिस नहीं होता ऐसे में कई बार इन पर क़ब्ज़े की नीयत से भी लोग विवाद खड़ा कर देते हैं. अफ़ज़ल वानी कहते हैं, “वक़्फ़ मुसलमान समुदाय की रीढ़ है. हर जमाने में वक़्फ़ ने मुसलमानों को सहारा दिया है. कई लोग ऐसे भी हैं जिनकी नीयत भले जो भी हो, लेकिन वो वक़्फ़ संपत्तियों पर हमलावर रहते हैं. मुसलमान समुदाय के भी बहुत से लोग हैं जिनकी बदनीयत नज़र इन संपत्तियों पर रहती है.”
अफ़ज़ल वानी कहते हैं, “विवाद इसलिए हैं क्योंकि ये संपत्ति है, जहां संपत्ति होती है वहां विवाद होता ही है. जहां कहीं भी लोगों को क़ानून के उल्लंघन का मौक़ा मिलता है तो वो करते हैं. समाज में अब नैतिक मूल्य भी कमज़ोर हो रहे हैं, ऐसे में जिसे भी मौक़ा मिलता है वो संपत्तियों को हथियाने की कोशिश करता है.”
क़ैसर शमीम कहते हैं, “अंग्रेज़ी का एक मुहावरा है Buying land is buying litigation. जहां ज़मीन होगी वहां विवाद भी होगा. सिर्फ़ वक़्फ़ संपत्तियों पर ही नहीं बल्कि सरकारी संपत्तियों पर भी विवाद है. लोग वक़्फ़ की संपत्तियों पर क़ब्ज़े की नीयत से भी विवाद पैदा कर देते हैं.” अफ़ज़ल वानी कहते हैं कि सत्ता और ताक़त का इस्तेमाल करके भी वक़्फ़ संपत्तियों पर क़ब्ज़े की कोशिश की जाती है. वो कहते हैं, “कोई सत्ता में आया या किसी का और कोई प्रभाव है, उसका इस्तेमाल करके या किसी को कमज़ोर समझकर वक़्फ़ संपत्ति पर क़ब्ज़ा करना या क़ब्ज़ा करने की नीयत रखना गंभीर बात है.”
“अगर पिछले तीस-चालीस साल से कोई चीज़ वक़्फ़ की तरह इस्तेमाल हो रही है और सर्वे में भी ऐसा ही आया है तो उस पर क़ब्ज़ा या विवाद करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. जो झगड़े या विवाद हो रहे हैं वो ताक़त और प्रभाव के दम पर हो रहे हैं.” ए़़डवोकेट जावेद अहमद कहते हैं, “सबसे ज़रूरी होता है संपत्ति का Mutation यानी दाखिल खारिज हो जाना. वक़्फ़ बोर्ड ने संपत्ति दर्ज कर ली है और उसके बाद भी उसे वक़्फ़ संपत्ति के रूप में रिवेन्यू रिकॉर्ड में दर्ज (दाख़िल-ख़ारिज) नहीं कराया गया है तब भी विवाद की गुंजाइश रह जाती है.”
वहीं क़ैसर शमीम कहते हैं, “इस्तेमाल के ज़रिए भी संपत्तियां वक़्फ़ होती हैं. अगर कोई जायदाद बहुत लंबे अर्से से इस्लाम के काम के लिए इस्तेमाल की जा रही है तो उसे भी वक़्फ़ माना जाएगा. वक़्फ़ एक्ट 1995 के तहत ये प्रावधान भी है कि अगर किसी जायदाद का बहुत लंबे वक़्त से ईदगाह या मस्जिद के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है तो उसे भी वक़्फ़ दर्ज किया जा सकता है.” क़ैसर शमीम कहते हैं, “अक्सर ऐसी संपत्तियों पर लोग विवाद खड़ा कर देते हैं जो वक़्फ़ के तौर पर किसी वजह से दर्ज नहीं हो पाई हैं.”
भारत में रेलवे और रक्षा विभाग के बाद सबसे ज़्यादा संपत्ति वक़्फ़ बोर्डों के पास है. इस्लाम के हिसाब से इन संपत्तियों से अर्जित फ़ायदे का इस्तेमाल ग़रीबों, यतीमों और ज़रूरतमंदों के लिए होना चाहिए. लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि वक़्फ़ संपत्तियों की सही से देखभाल न होने और प्रबंधन ना होने की वजह से इनसे हो सकने वाला फ़ायदा मुसलमानों तक नहीं पहुंच पा रहा है.
अफ़ज़ल वानी कहते हैं, “अगर वक़्फ़ संपत्तियों का इस्तेमाल पारदर्शिता से हो और इन्हें डेवलप किया जाए तो इससे मुसलमानों की बहुत सी समस्याएं दूर हो सकती हैं.” वहीं एडवोकेट जावेद अहमद कहते हैं, “वक़्फ़ संपत्तियां ज़रूरतमंद मुसलमानों के लिए आर्थिक मदद का ज़रिया बन सकती हैं. लेकिन अभी की व्यवस्था में ना इनका प्रबंधन ठीक से हो पा रहा है और ना देखभाल. भारत सरकार ने संपत्तियों का डिजिटल पंजीयन करने की शुरुआत की है. ये एक बड़ा काम है. अगर ये सही दिशा में होता है तो आगे इन संपत्तियों के विकास का रास्ता साफ़ हो सकता है.” भारत में कितनी वक़्फ़ संपत्तियां वक़्फ़ बोर्डों के रिकार्ड में दर्ज हैं इसका आंकड़ा तो है लेकिन इनसे कितनी आय होती है इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है.
(दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी से साभार)